Thursday, December 31, 2009

अब रुचिका कि हसने कि बारी हैं

खाकी कि इज्ज़त खाक करने वाला कहाँ तू पहला है ,
भेड़ कि वर्दी में भेड़िया कहाँ तू पहला हैं.
तुझसे छीनना नहीं तुझको नया मेडल मिलना चाहिए .
क्यूंकि पकडे जाने वालों कि फेरिस्त में नंबर तेरा पहला है .


हैं अहद पक्का तुझको भेजेंगे तेरी सही जगह ,
गरम  हैं खून ,बस एक बार तू और दे मुस्कुरा |
तेरा गुनाह अब पड़ने वाला भारी है ,
अब इक रूह कि हसने कि बारी  है |
                        -ताबिश 'शोहदा' जावेद

Thursday, December 17, 2009

दिन-बा-दिन

रब ने जब किया था किस्मत का बटवारा ,
हम दावेदारी से गमों का संदूक  लाये थे |

मुफलिसी के भी ये क्या दिन आये हैं हमारे ,
आजकल सिर्फ आंसू ही खर्च किया करते हैं |

बेबसी के भी ये क्या दिन आये हैं हमारे ,
पोछ न पाए कभी आंसू हमेशा साथ बहाए हैं |

नउम्मीदी के भी ये कैसे दिन आये हैं हमारे ,
मौत से मोहब्बत ,ज़िन्दगी से खौफज़दा रहा करते हैं |

यकीन होता नहीं की ये कैसे दिन आये हैं हमारे ,
इंसान दिखते नहीं ,भीड़ जुटाए साए हैं |

हर तरफ नुमाया सायों  को करता हूँ एलान,
हट जाओ तुम  सब अब आये दिन हमारे हैं |
                             -ताबिश 'शोहदा' जावेद        
                            

Sunday, November 29, 2009

डैडी

एक दिन सपने में  फिर आ  जाओ न डैडी,
धुन्दला होता चेहरा फिर ताज़ा कर जाओ न डैडी |

भूलों कैसे वो आप का लाड ,
एक बार फिर माथा चूमो न डैडी |


चलना तो सिखा गए हो ,
पैरों पे खड़ा होना तो सिखाओ डैडी | 


तन्हा खड़ा रस्ते ताकता हूँ ,
आ कर ऊँगली थामो नो डैडी |


बहोत गलतिया  में करता हूँ ,
एक बार गुस्से से डाटो न डैडी |


डर लगता हैं मुझको यहाँ ,
सीने से लगाने आओं न डैडी |


नाम ऊँचा ही करता जाऊंगा ,
सर फक्र से ऊँचा दिखलाने आओगे न डैडी |


एक दिन सपने में फिर आ जाओ न डैडी,
इस ज़िद को भी पूरा कर जाओ न डैडी |
               -ताबिश 'शोहदा' जावेद

Wednesday, November 18, 2009

साए से गुफ़्तगु



तुम आखिर हो कौन ?
मेरे साथ का साया अक्सर मुझसे पूछता हैं
शायद ,मैं सपनो का पुलिंदा हूँ, 
शायद ,मैं अरमानो का जमघट हूँ,
शायद मैं हसरतो का खरीदार हूँ,
शायद मैं इंसानियत की मिसाल हूँ,
या फिर शायद ,
मैं दुनिया का सबसे खुदगर्ज़ इंसान हूँ  . 




सच तो ये हैं मेरे साथ के साए,
मैं जानता ही नहीं मैं कौन हूँ ,
पर तू बता ,तू तो मेरा  जोड़ीदार हैं,
मेरे हर गुनाह का साझीदार है,
आखिर क्यूँ है मेरा वजूद यहाँ पे,
मेरा इस ज़मीन पर क्या काम है?



जब  से पूछा है उससे ये सवाल ,
मेरा साया कतराता है मुझसे ,
दिन में छोटा ,रात में छुपा रहता है |

वापस आ जा  हमरूह मेरे ,
तुझसे नहीं पूछूँगा कोई सवाल |
ज़िन्दगी की सुबह हो गयी है ,
तो हो भी जाएगी शाम ,
वक़्त  आने पे पता ही चल जायेगा ,
अपना  यहाँ पर काम |
                  ताबिश 'शोहदा' जावेद 
image credit: owningpink.com









Saturday, November 14, 2009

चेहरा

मुखौटे पे मुखौटा ,भेस दर  भेस,
असली चेहरा देखे हुए अरसा हो गया |

Saturday, April 25, 2009

नई राहें

फासले कम होते नही दरमियान के
ये राहें चली जा रही अहं ज़बरदस्ती,
खात्मा कभी होगा नही इस खलिश का
एक ज़िन्दगी जी जा रही है ज़बरदस्ती।

हुआ हैं मोड़ चुनने का वादा ज़बरदस्ती
न दिल पे है काबू ,हैं न दिमाग दुरुस्त,
इस ज़िन्दगी के साथ बहुत की जा रही है ज़बरदस्ती।

जालिम हैं रहबर ,पर हैं इससे अनजान,
राहें ख़ुद बनाई जा सकती हैं ज़बरदस्ती,
अरमानों की चीख से जागा है ज़मीर,
ज़बरदस्त बरपेगा हंगामा,जो अब की किसी ने ज़बरदस्ती ।
_ताबिश 'शोहदा' जावेद

Sunday, April 19, 2009

धुंदली रौशनी

रातों की तड़प तू क्या जाने ,
धुंदली रौशनी के असली मायने,
है तो पहलु इसका ढलती शाम ,
तो ये लाती भी है उगते सूरज का पैगाम।

Saturday, April 11, 2009

शोहदा

कुछ बातें अनकहीं रह गई
पर लफ्ज़ों की गुंजाईश थी कहा
कुछ नजदीकियां कभी हासिल हुई
पर दूरियों की समझ थी कहाँ

हमारी उम्र की थी नासमझी
चढ़ सका प्यार परवान
हो सका कोई वादा पुख्ता,
पर बिना शक थी मोहब्बत बेपनाह

पा कर रहूँगा अपना प्यार ,
गर एह बार फिर हुआ दीदार।
जो अबकी पाया तो सही ,
वैसे भी होता है अब 'शोहदों' में शुमार
-ताबिश 'शोहदा' जावेद

Thursday, March 26, 2009

दोस्त?

कल तो जो हमारी दोस्ती को अपनी ताकात कहते थे ,
आज वो हमारी कमजोरी जानने का दम भरते है ।

Sunday, March 22, 2009

मुसीबत भरा मोड़


सबने यहाँ किश्तों का सौदा लिखवाया है ,

मुक्कम्मल मौत का कोई किस्सा है कहाँ ।

मुसीबत से हुए रु -ब-रु तो ये जाना ,

है कौन साथ और है कौन बेगाना ।

होगी मुसीबत ,राहगीर करेगा कोशिश पुरज़ोर ,

हैं मंजिल का अंदाजा तभी तो लिया है ये मोड़ ॥

-ताबिश 'शोहदा' जावेद

Saturday, March 7, 2009

ख्वाब नीलाम

वो चश्मा लाकर करोगे क्या ?
जो खुली आँखों को करता है रोशन ,
बंद आँखों को तो वो खोल नही सकता ,
ऐसे चश्मे से तुम्हे दिखेगा क्या ?

जेबघड़ी तुम लाकर करोगे क्या ?
गांधीजी तो जेब में रखते थे ,
तुम्हारी जेब तो खाली ही नही,
बताओ तुम उसे रखोगे कहाँ ?

वो थाली तो तुम बिल्कुल न लाना ,
गाँधीजी तो उसमे भोजन करते थे ,
तुम आदत से मजबूर उसमे छेद कर दोगे ,
बताओ फिर मुहं दिखाओगे क्या ?

हो सके तो उनके ख्वाब
खरीद लाओ,
क्यूंकि ज़मीर तुम्हारा तुम्हे रोक नही सकता ,
इस समान का कया है ले भी आओगे ,
तो फिर सियासत ही करोगे और करोगे क्या ?

-ताबिश 'शोहदा' जावेद




Wednesday, February 11, 2009

सरपरस्त

बागबाँ क्या
यहाँ बयाबाँ नहीं मिलता ,
इस मौकापरस्त दुनिया में ,
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता

ज़िन्दगी भर का साथ कहाँ ,
उठ खड़े होने को हाथ नहीं मिलता
इस शोहरतपरस्त दुनिया में ,
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता

एक दूजे के लिए लम्हा कहाँ ,
पर कौन यहाँ तन्हा नहीं मिलता
इस वक्तपरस्त दुनिया में ,
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता

इस सैकड़ों आदमी की भीड़ में,
एक शख्स अपना नहीं मिलता
इस दौलतपरस्त दुनिया में
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता

फलक छुते मीनारों में,
ज़मीन पर बसने वाला नहीं मिलता.
इस ख्वाबपरस्त दुनिया में
क्यूँ सब को सरपरस्त नहीं मिलता ?

हमदर्द नहीं मिलता,
हमराज़ नहीं मिलता ,
इस ज़फापरस्त दुनिया में,
एक कलि को खिलने का मौका नहीं मिलता
-ताबिश 'शोहदा' जावेद

Monday, February 9, 2009

तलाश

एक अ दोस्त की तलाश है
वो जो आखों से पढ़े दिल की बात,
जो हो तैयार हर वक्त देने को साथ ,
ऐसे एक दोस्त की तलाश है।

एक अ दोस्त की तलाश है
देख के मेरे आंसूं हो पलकें उसकी नम,
जो न बोले 'मैं' हमेशा कहे हम,
ऐसे अक दोस्त की तलाश है ।


एक अदद दोस्त की तलाश है,
हर सिम्द फैले अंधेरे के लिए हो अफताब,
जाने मुझे मानो में हूँ एक खुली किताब,
ऐसे अक दोस्त की तलाश है ।

एक अदद दोस्त की तलाश है ,
वो जो हो मेरा हमरूह ,जो पढ़ ले मेरा मन,
बेशक तुम हो यहीं कहीं ,पर कब उठेगे चिल्मन,
उस पर से जिस दोस्त की मुझे तलाश है ।


-ताबिश 'शोहदा' जावेद



Wednesday, February 4, 2009

मेरा सवाल

मेरी इस बेमंजिल ज़िन्दगी में,
दर्द बेपनाह है|
संगदिल मेरा ये,
यादों का बयाँबा है|


मन जानता नहीं मेरा बेवफाई,
पर हर कदम पर तनहा है|
पूछता रहता है यही सवाल
वफ़ा का अब सिला कहाँ है?


नादान जानता नहीं की,
ज़माने का निजाम अब बदला है|
हर शख्स अब बेरूह है,
हर दिल में खला है|


गिला नहीं की मेरा गम बेपनाह है,
पर जाने कब से दिल में ये सवाल बसा है|
या खुदा दिल उसी का क्यूँ कमजोर बना है,
नसीब में जिसके दर्द बेपनाह है|

-ताबिश'शोहदा'जावेद