कुछ बातें अनकहीं रह गई
पर लफ्ज़ों की गुंजाईश थी कहा ।
कुछ नजदीकियां कभी हासिल न हुई
पर दूरियों की समझ थी कहाँ।
हमारी उम्र की थी नासमझी
चढ़ न सका प्यार परवान
हो न सका कोई वादा पुख्ता,
पर बिना शक थी मोहब्बत बेपनाह।
पा कर रहूँगा अपना प्यार ,
गर एह बार फिर हुआ दीदार।
जो अबकी न पाया तो न सही ,
वैसे भी होता है अब 'शोहदों' में शुमार।
-ताबिश 'शोहदा' जावेद
No comments:
Post a Comment