Saturday, April 11, 2009

शोहदा

कुछ बातें अनकहीं रह गई
पर लफ्ज़ों की गुंजाईश थी कहा
कुछ नजदीकियां कभी हासिल हुई
पर दूरियों की समझ थी कहाँ

हमारी उम्र की थी नासमझी
चढ़ सका प्यार परवान
हो सका कोई वादा पुख्ता,
पर बिना शक थी मोहब्बत बेपनाह

पा कर रहूँगा अपना प्यार ,
गर एह बार फिर हुआ दीदार।
जो अबकी पाया तो सही ,
वैसे भी होता है अब 'शोहदों' में शुमार
-ताबिश 'शोहदा' जावेद

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