Wednesday, February 11, 2009

सरपरस्त

बागबाँ क्या
यहाँ बयाबाँ नहीं मिलता ,
इस मौकापरस्त दुनिया में ,
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता

ज़िन्दगी भर का साथ कहाँ ,
उठ खड़े होने को हाथ नहीं मिलता
इस शोहरतपरस्त दुनिया में ,
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता

एक दूजे के लिए लम्हा कहाँ ,
पर कौन यहाँ तन्हा नहीं मिलता
इस वक्तपरस्त दुनिया में ,
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता

इस सैकड़ों आदमी की भीड़ में,
एक शख्स अपना नहीं मिलता
इस दौलतपरस्त दुनिया में
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता

फलक छुते मीनारों में,
ज़मीन पर बसने वाला नहीं मिलता.
इस ख्वाबपरस्त दुनिया में
क्यूँ सब को सरपरस्त नहीं मिलता ?

हमदर्द नहीं मिलता,
हमराज़ नहीं मिलता ,
इस ज़फापरस्त दुनिया में,
एक कलि को खिलने का मौका नहीं मिलता
-ताबिश 'शोहदा' जावेद

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