बागबाँ क्या
यहाँ बयाबाँ नहीं मिलता ,
इस मौकापरस्त दुनिया में ,
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता।
ज़िन्दगी भर का साथ कहाँ ,
उठ खड़े होने को हाथ नहीं मिलता ।
इस शोहरतपरस्त दुनिया में ,
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता।
एक दूजे के लिए लम्हा कहाँ ,
पर कौन यहाँ तन्हा नहीं मिलता ।
इस वक्तपरस्त दुनिया में ,
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता।
इस सैकड़ों आदमी की भीड़ में,
एक शख्स अपना नहीं मिलता ।
इस दौलतपरस्त दुनिया में
हर किसी को सरपरस्त नहीं मिलता ।
फलक छुते मीनारों में,
ज़मीन पर बसने वाला नहीं मिलता.
इस ख्वाबपरस्त दुनिया में
क्यूँ सब को सरपरस्त नहीं मिलता ?
हमदर्द नहीं मिलता,
हमराज़ नहीं मिलता ,
इस ज़फापरस्त दुनिया में,
एक कलि को खिलने का मौका नहीं मिलता ।
-ताबिश 'शोहदा' जावेद
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