Thursday, December 17, 2009

दिन-बा-दिन

रब ने जब किया था किस्मत का बटवारा ,
हम दावेदारी से गमों का संदूक  लाये थे |

मुफलिसी के भी ये क्या दिन आये हैं हमारे ,
आजकल सिर्फ आंसू ही खर्च किया करते हैं |

बेबसी के भी ये क्या दिन आये हैं हमारे ,
पोछ न पाए कभी आंसू हमेशा साथ बहाए हैं |

नउम्मीदी के भी ये कैसे दिन आये हैं हमारे ,
मौत से मोहब्बत ,ज़िन्दगी से खौफज़दा रहा करते हैं |

यकीन होता नहीं की ये कैसे दिन आये हैं हमारे ,
इंसान दिखते नहीं ,भीड़ जुटाए साए हैं |

हर तरफ नुमाया सायों  को करता हूँ एलान,
हट जाओ तुम  सब अब आये दिन हमारे हैं |
                             -ताबिश 'शोहदा' जावेद        
                            

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