Saturday, April 25, 2009

नई राहें

फासले कम होते नही दरमियान के
ये राहें चली जा रही अहं ज़बरदस्ती,
खात्मा कभी होगा नही इस खलिश का
एक ज़िन्दगी जी जा रही है ज़बरदस्ती।

हुआ हैं मोड़ चुनने का वादा ज़बरदस्ती
न दिल पे है काबू ,हैं न दिमाग दुरुस्त,
इस ज़िन्दगी के साथ बहुत की जा रही है ज़बरदस्ती।

जालिम हैं रहबर ,पर हैं इससे अनजान,
राहें ख़ुद बनाई जा सकती हैं ज़बरदस्ती,
अरमानों की चीख से जागा है ज़मीर,
ज़बरदस्त बरपेगा हंगामा,जो अब की किसी ने ज़बरदस्ती ।
_ताबिश 'शोहदा' जावेद

1 comment:

  1. bhai zindagi ka ek sach jalak raha hai ...
    bhai aap hi samaj sakte hai hamare haal-e-dil ko...
    sahi me yeh bahut khub likha ,one of the fav...

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