Sunday, November 29, 2009

डैडी

एक दिन सपने में  फिर आ  जाओ न डैडी,
धुन्दला होता चेहरा फिर ताज़ा कर जाओ न डैडी |

भूलों कैसे वो आप का लाड ,
एक बार फिर माथा चूमो न डैडी |


चलना तो सिखा गए हो ,
पैरों पे खड़ा होना तो सिखाओ डैडी | 


तन्हा खड़ा रस्ते ताकता हूँ ,
आ कर ऊँगली थामो नो डैडी |


बहोत गलतिया  में करता हूँ ,
एक बार गुस्से से डाटो न डैडी |


डर लगता हैं मुझको यहाँ ,
सीने से लगाने आओं न डैडी |


नाम ऊँचा ही करता जाऊंगा ,
सर फक्र से ऊँचा दिखलाने आओगे न डैडी |


एक दिन सपने में फिर आ जाओ न डैडी,
इस ज़िद को भी पूरा कर जाओ न डैडी |
               -ताबिश 'शोहदा' जावेद

Wednesday, November 18, 2009

साए से गुफ़्तगु



तुम आखिर हो कौन ?
मेरे साथ का साया अक्सर मुझसे पूछता हैं
शायद ,मैं सपनो का पुलिंदा हूँ, 
शायद ,मैं अरमानो का जमघट हूँ,
शायद मैं हसरतो का खरीदार हूँ,
शायद मैं इंसानियत की मिसाल हूँ,
या फिर शायद ,
मैं दुनिया का सबसे खुदगर्ज़ इंसान हूँ  . 




सच तो ये हैं मेरे साथ के साए,
मैं जानता ही नहीं मैं कौन हूँ ,
पर तू बता ,तू तो मेरा  जोड़ीदार हैं,
मेरे हर गुनाह का साझीदार है,
आखिर क्यूँ है मेरा वजूद यहाँ पे,
मेरा इस ज़मीन पर क्या काम है?



जब  से पूछा है उससे ये सवाल ,
मेरा साया कतराता है मुझसे ,
दिन में छोटा ,रात में छुपा रहता है |

वापस आ जा  हमरूह मेरे ,
तुझसे नहीं पूछूँगा कोई सवाल |
ज़िन्दगी की सुबह हो गयी है ,
तो हो भी जाएगी शाम ,
वक़्त  आने पे पता ही चल जायेगा ,
अपना  यहाँ पर काम |
                  ताबिश 'शोहदा' जावेद 
image credit: owningpink.com









Saturday, November 14, 2009

चेहरा

मुखौटे पे मुखौटा ,भेस दर  भेस,
असली चेहरा देखे हुए अरसा हो गया |