Wednesday, February 4, 2009

मेरा सवाल

मेरी इस बेमंजिल ज़िन्दगी में,
दर्द बेपनाह है|
संगदिल मेरा ये,
यादों का बयाँबा है|


मन जानता नहीं मेरा बेवफाई,
पर हर कदम पर तनहा है|
पूछता रहता है यही सवाल
वफ़ा का अब सिला कहाँ है?


नादान जानता नहीं की,
ज़माने का निजाम अब बदला है|
हर शख्स अब बेरूह है,
हर दिल में खला है|


गिला नहीं की मेरा गम बेपनाह है,
पर जाने कब से दिल में ये सवाल बसा है|
या खुदा दिल उसी का क्यूँ कमजोर बना है,
नसीब में जिसके दर्द बेपनाह है|

-ताबिश'शोहदा'जावेद

4 comments:

  1. आपका हिन्दी चिट्ठाकारी में हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

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  2. स्वागत ब्लॉग परिवार में.

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  3. बहुत खूब ........
    स्वागत है आपका

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