डरता हूँ कि कभी ,
न ऐसा दिन आ जाए ,
के खुद अपने आप ही
से नफरत हो जाए |
डरता हूँ कि कभी ,
न ऐसा दिन आ जाए ,
के खुद अपने सामने ही
अपना जनाज़ा उठ जाये |
डरता हूँ कि कभी
न ऐसा असमंजस आ जाए ,
के खुद अपने उसूल ही,
समझौते में रख जाए |
डरता हूँ कि कभी ,
न सामने वो पल आ जाए
के खुद अपनी गिनती भी,
पूरी दुनिया संग हो जाए |- ताबिश 'शोहदा' जावेद
सुंदर रचना।
ReplyDeletebhai bahut bariye .....
ReplyDeleteshandar tabhish bhai shandar.....
ReplyDeletebahut achchhi rachana................keep it up
ReplyDeletebahut khoob.... vaah...
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