हमसाया कोई नहीं पर इस बस्ती में घर बोहत हैं,
आवाजों में कशिश नहीं , पर यहाँ शोर बोहत हैं.
एक मय्यत कोई जाते देखा उस दिन तो हुआ ज़ाहिर ,
जज्बातों का पता नहीं, पर यहाँ रिश्ते बोहत है .
अजब माजरा है की ये जो हर वक़्त रहते हैं साथ,
इनकी आखों में दोस्ती का पता नहीं ,पर रंजिश बोहत हैं .
यार के घर के बहार खड़ा सोच रहा 'ताबिश',
दिल का तो पता नहीं, उसके कूचे पे पत्थर बोहत है.
मुलाक़ात हुई उस दिन इस बस्ती के खुदा से ,
रहमत पर शक नहीं , पर उसके यहाँ इम्तिहान बोहत हैं -ताबिश 'शोहदा ' जावेद
good one yaar. keep it up
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