Tuesday, February 21, 2012

हमसाया कोई नहीं पर इस बस्ती में घर बोहत हैं,
आवाजों में कशिश नहीं , पर यहाँ  शोर बोहत हैं.

एक मय्यत कोई जाते देखा उस दिन तो हुआ ज़ाहिर ,
जज्बातों का पता नहीं,  पर यहाँ रिश्ते बोहत है .

अजब माजरा है की ये जो हर वक़्त रहते हैं साथ,
इनकी आखों में दोस्ती का पता नहीं ,पर रंजिश बोहत हैं .

 यार के घर के बहार खड़ा सोच रहा 'ताबिश',
दिल का तो पता नहीं,  उसके कूचे पे  पत्थर बोहत है.

मुलाक़ात हुई उस दिन इस बस्ती के खुदा से ,
रहमत पर शक नहीं , पर उसके यहाँ इम्तिहान बोहत हैं 

                                                   -ताबिश  'शोहदा ' जावेद


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