मेरे साथ का साया अक्सर मुझसे पूछता हैं
शायद ,मैं सपनो का पुलिंदा हूँ,
शायद ,मैं अरमानो का जमघट हूँ,
शायद मैं हसरतो का खरीदार हूँ,
शायद मैं इंसानियत की मिसाल हूँ,
या फिर शायद ,
मैं दुनिया का सबसे खुदगर्ज़ इंसान हूँ .
सच तो ये हैं मेरे साथ के साए,
मैं जानता ही नहीं मैं कौन हूँ ,
पर तू बता ,तू तो मेरा जोड़ीदार हैं,
मेरे हर गुनाह का साझीदार है,
आखिर क्यूँ है मेरा वजूद यहाँ पे,
मेरा इस ज़मीन पर क्या काम है?
जब से पूछा है उससे ये सवाल ,
मेरा साया कतराता है मुझसे ,
दिन में छोटा ,रात में छुपा रहता है |
वापस आ जा हमरूह मेरे ,
तुझसे नहीं पूछूँगा कोई सवाल |
ज़िन्दगी की सुबह हो गयी है ,
तो हो भी जाएगी शाम ,
वक़्त आने पे पता ही चल जायेगा ,
अपना यहाँ पर काम |
ताबिश 'शोहदा' जावेद
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