एक रोज़ निकला मैं सड़क पर ,
नकाब से अपना चहरा ढक कर,
दो कदम पर ही मिला शख्स अनजान,
पूछा उसने क्या है तुम्हारी पहचान ?
तुम हो पंडित, हरिजन,या फिर बनिया,
तुम सुन्नी हो, वहाबी, या फिर शिया,
तुम हो कुर्मी ,मोची,या फिर कुम्हार,
रहते हो कहाँ ,महाराष्ट्र ,यू प़ी या बिहार ,
है चमड़ी तुम्हारी गोरी ,काली या भूरी ,
जाती ही नहीं, उपजाति भी बताओ पूरी ,
हो तुम क्या हिन्दू, मुस्लिम या इसाई ,
बताओ गोत्र अपना ,शायद निकलो मेरे भाई ,
जन्मे हो कहाँ ,उत्तर या दखिन्न कि ओर,
पाते हो कोटा ,या है अभी वोटबैंक कमज़ोर |
मैंने भी दे दिया उसको जवाब ,
फेक दिया उतार के अपना नकाब |
देख चेहरा मेरा बौखलाया वो शख्स,
मेरे चेहरे में दिखा उसे अपना ही अक्स,
कहा उसने हममे नहीं है कोई फर्क,
है फर्क ,मैंने भी कह दिया बेधड़क ,
मैंने कहा इंसानों में है फर्क सिर्फ एक ,
बंदा होता है बुरा या फिर होता है नेक,
जो कोई भी माने कि है कोई और अंतर,
उसकी गिनती होती है बुरे लोगों के अन्दर,
बढा आगे मैं कह कर,में अच्छा हूँ ,आप बुरे हो जनाब,
जो पीछे मुड के देखा ,तो उठा रहा था वो मेरा नकाब |
- ताबिश 'शोहदा' जावेद
Saturday, August 21, 2010
Sunday, April 18, 2010
डरता हूँ कि कभी ,
डरता हूँ कि कभी ,
न ऐसा दिन आ जाए ,
के खुद अपने आप ही
से नफरत हो जाए |
डरता हूँ कि कभी ,
न ऐसा दिन आ जाए ,
के खुद अपने सामने ही
अपना जनाज़ा उठ जाये |
डरता हूँ कि कभी
न ऐसा असमंजस आ जाए ,
के खुद अपने उसूल ही,
समझौते में रख जाए |
डरता हूँ कि कभी ,
न सामने वो पल आ जाए
के खुद अपनी गिनती भी,
पूरी दुनिया संग हो जाए |- ताबिश 'शोहदा' जावेद
Monday, April 12, 2010
अपनी कहानी
दास्ताने ज़िन्दगी के हम ऐसे किरदार हैं,
दूसरों ने किस्से जोड़े,कहानी हमारी लिख गयी .
-ताबिश 'शोहदा' जावेद
दूसरों ने किस्से जोड़े,कहानी हमारी लिख गयी .
-ताबिश 'शोहदा' जावेद
Wednesday, March 24, 2010
अजीब ख्वाब
ज़िन्दगी कि दौड़ में,
.
पेशेवर आगे निकल गए,
हम तकदीर को रोते रहे ,
वो तदबीर सहारे निकल गए
साथियों के जमावड़े में,
तन्हा ही रह गए,
तरक्की पर खुश होते रहे ,
असल में ,सब आगे निकल गए.
सपनो कि फेहरिस्त में ,
ऐसा ख्वाब बुन गए ,
बरसो से सोते रहे ,
आज एक ख्वाब सहारे उठ गए .
- ताबिश 'शोहदा' जावेद
.
Thursday, January 21, 2010
चमकती ऑंखें
हैं मेरे कमज़ोर बाजुओं को देख मेरे ख़्वाबों पे शक उनको,
क्या उन्हें मेरी चमकती ऑंखें दिखाई नहीं देती |
क्या उन्हें मेरी चमकती ऑंखें दिखाई नहीं देती |
Thursday, January 14, 2010
दूर और तुम
हर सिम्द जब तुम नुमाया हो.
तो बताओ तुम मुझसे दूर कहाँ हो ?
कहा मुमकिन कि दूर किसी से उसका साया हो,
तो बताओ तुम मुझसे दूर कहा हो?
मेरे वजूद कि जब तुम ही वजह हो ,
तो बताओ तुम मुझसे दूर कहा हो?
पगली जब तुम ही मेरा मुक़द्दर हो
तो बताओ तुम मुझसे दूर कहा हो ?
हम दोनों ही को तो चाँद दिखता
तो फिर बताओ तुम मुझसे दूर कहा हो?
जब कभी रूह मेरी मुझसे अलग हो,
तब कह देना कि तुम मुझसे दूर हो .
फिलहाल तो वाजिब है यह सवाल .
बताओ तुम मुझसे दूर कहा हो?
-ताबिश 'शोहदा' जावेद
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